क्या होता है जिगोलो
जब सब उम्मीदें खो जायें, जब सारे सपने टूट जायें, जब हर वादा और भरोसा छल साबित हो और हालात यह बन जायें कि हाथ को रोजगार तो क्या दो पैसे कमाने के मौकों में भी अपार संघर्ष करना पड़े, तो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और भ्रामक प्रचार के सहारे बनाये भ्रम देर सवेर टूटते ही हैं और धीरे-धीरे छंटता है वह कुहासा जिसने एक इंसान के अंदर की इंसानियत भी इस हद तक सीमित कर दी थी कि एक दिन खुद से भी शर्मिंदा होना पड़े।
जूनियर जिगोलो एक ऐसे ही वक्त के मारे इंसान की कहानी है जिसकी दुनिया कुछ और थी मगर हकीकत के तूफानी थपेड़ों ने उसे उस जमीन पर ला पटका था जहां खुद या परिवार को खिलाने के लिये दो वक्त का खाना भी तय नहीं था कि मिलेगा या नहीं। ऐसे में खुदकुशी या समझौते के सिवा तीसरा कोई विकल्प नहीं बचता और वह मजबूरन समझौते के विकल्प को चुनता है और एक ऐसी दुनिया में कदम रखता है जहां अब तक औरतों का एकाधिकार समझा जाता था और वह मर्द वेश्याओं के बाजार में उतर कर अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है।
लेकिन यह उतना सहज और सरल नहीं था जितना बाहर से दिखता है। धंधा कोई भी हो, उसके सकारात्मक के साथ नकारात्मक पहलू होते ही हैं और उसे कदम-कदम पर इन संघर्षों से जूझना पड़ता है। आर्थिक मंदी और कोरोना आपदा ने जहां दुनिया के तमामतर लोगों के लिये हालात बेहद मुश्किल किये थे, उन्हें कंगाल कर के दो वक्त के खाने का भी मोहताज कर दिया था और बड़े पैमाने पर लोग खुदकुशी कर रहे थे... वहीं एक वर्ग ऐसा भी था जिसे इस आपदा में लूटने, पैसे बनाने के बहुतेरे मौके मिले थे और उनका जीवन स्तर पहले के मुकाबले बेहतर हो गया था और आर्थिक रूप से सम्पन्न ऐसे लोगों के बीच जिस्मफरोशी के इस बाजार की गुंजाइश बेतहाशा बढ़ गयी थी।
शारीरिक जरूरतों के मारे सिर्फ मर्द ही नहीं होते बल्कि औरतें भी होती हैं, दोनों की परिस्थितियों में फर्क भी हो सकता है और वे समान भी हो सकती हैं लेकिन यह तय है कि अब अपनी इच्छाओं का दमन कर के वे सक्षम औरतें घुट-घुट कर जीना नहीं चाहतीं और उन्होंने खरीद कर वह खुशी हासिल कर लेने की कला सीख ली है और उनकी जरूरतों के मद्देनजर एक आर्गेनाईज्ड बाजार भी खड़ा हो गया है जहां हर बड़े शहर में स्पा, पार्लर, डिस्कोथेक, क्लब, काॅफी हाऊस जैसी जगहें हो गयीं हैं या सरोजनी नगर, कमला नगर मार्केट, पालिका बाजार, लाजपत नगर, जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर जैसी कई ओपन मार्केट मौजूद हैं, यहां बाकायदा जिगोलो ट्रेनर, कोऑर्डिनेटर, एंजेसीज और कंपनी तक अपनी हिस्सेदारी के लिये मौजूद हैं और एक तयशुदा कमीशन पर नये-नये लड़के यह काम धड़ल्ले से कर रहे हैं।
इन हालात से गुजरते वह शख्स न सिर्फ एक नई अनजानी दुनिया से दो चार होता है बल्कि धीरे-धीरे उसके पाले वे भ्रम भी दूर होते हैं जो धर्म को सिरमौर रखते उसने बना लिये थे लेकिन यह रास्ते आसान नहीं थे। अपनी आत्मग्लानी और अपराधबोध से जूझता वह अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करता है तो एक के बाद एक समस्याओं में फंसता चला जाता है जो उसके लिये एक बड़ी लंबी और भयानक रात जैसी साबित होती हैं लेकिन वह हार नहीं मानता और उजाले की देहरी तक पहुंच कर एक नये सूरज का सामना करके ही दम लेता है जहां अपने अंदर का सब मैल निकाल कर अब वह एक बेहतर इंसान बन चुका था जिसका धर्म सिर्फ इंसानियत थी।
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